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Lok Sabha Speaker पद पर नीतीश-नायडू में कौन पड़ेगा ज्यादा भारी, क्या BJP निकाल पाएगी बीच की राह?

Modi 3.0 Update: लोकसभा चुनावों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार NDA की सरकार बनाई गई है. BJP के अपने दम पर बहुमत नहीं पाने के चलते इस सरकार में नीतीश कुमार की JDU और चंद्रबाबू नायडू की TDP का अहम रोल है.

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Lok Sabha Speaker पद पर नीतीश-नायडू में कौन पड़ेगा ज्यादा भारी, क्या BJP निकाल पाएगी बीच की राह?
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Modi 3.0 Update: लोकसभा चुनावों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के नेतृत्व में तीसरी बार बनी NDA सरकार ने कामकाज शुरू कर दिया है. मंत्रियों को कामकाज बांट दिया गया है. ऐसे में अब एक बार फिर सबकी निगाहें लोकसभा स्पीकर के पद पर टिक गई हैं, जिस पर भाजपा के साथ ही सरकार को समर्थन देने वाले दोनों प्रमुख दलों JDU और TDP की भी निगाहें लगी हुई हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (NItish Kumar) की JDU और आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री पद संभालने की तैयारी कर रहे चंद्रबाबू नायडू (N Chandrababu Naidu), दोनों की तरफ से कई बार लोकसभा स्पीकर पद के लिए दावा ठोका जा चुका है. इस बीच BJP खुद भी यह पद अपने ही पास बरकरार रखने की कोशिश में जुटी हुई है. इसके लिए आंध्र प्रदेश की भाजपा अध्यक्ष पुरंदेश्वरी का नाम आगे किया गया है, जिस पर नायडू भी सहमत हो सकते हैं. अब देखना यह है कि तीनों में से यह पद किसके हाथ लगता है.


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पुरंदेश्वरी के नाम पर क्यों सहमत होगी TDP?

भाजपा की आंध्र प्रदेश अध्यक्ष डी. पुरंदेश्वरी के नाम पर TDP के सहमत होने की भाजपा को पूरी उम्मीद है. दरअसल पुरंदेश्वरी आंध्र के पूर्व मुख्यमंत्री और TDP संस्थापक एनटी रामाराव की बेटी हैं, लेकिन 1996 में नायडू के रामाराव का तख्तापलट करते समय पुरंदेश्वरी ने पिता के बजाय जीजा का साथ दिया था. इससे TDP को अपना स्पीकर नहीं बनने पर भी यह कहने का मौका मिलेगा कि उनके ही राज्य को यह पद मिला है.


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क्यों टिकी है नीतीश-नायडू की स्पीकर पद पर नजर

भाजपा के लिए नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की अहमियत का अंदाजा उनके समर्थन पर सरकार का भविष्य टिका होने से लगाया जा सकता है. मंत्रालयों के बंटवारे में भी इनकी पार्टियों को तरजीह दी गई है. पीएम मोदी ने 71 मंत्रियों के साथ कैबिनेट में शपथ ली है, इनमें 11 गैरभाजपाई सांसदों को मंत्रालय मिले हैं. इसके बावजूद नीतीश और नायडू एक खास कारण से स्पीकर पद अपने पास रखना चाहते हैं. दरअसल दोनों नेताओं को लगता है कि यदि स्पीकर पद उनके पास होगा तो मोदी-शाह की जोड़ी यदि कभी उनके दलों को तोड़ने की कोशिश करती है तो उसे बेकार करने में मदद मिलेगी. 


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पिछले दोनों कार्यकाल में BJP का रहा है स्पीकर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले दोनों कार्यकाल में लोकसभा स्पीकर का पद भाजपा के पास रहा है. पहले इस पद पर सुमित्रा महाजन (Sumitra Mahajan) रहीं, जबकि 2019 में यह पद ओम बिरला (Om Birla) को दिया गया था. दोनों ही बार लोकसभा में भाजपा का अपने दम पर बहुमत होने के चलते उसे चुनौती देने वाला कोई नहीं था, लेकिन 17वीं लोकसभा में स्थिति बदली हुई है. भाजपा के पास लोकसभा में 240 सीट हैं यानी वह अपने दम पर बहुमत से 32 सीट पीछे है. NDA की सरकार बनवाने में TDP के 16 और JDU के 12 सांसदों ने अहम भूमिका निभाई है. इसी दम पर दोनों दल अपना दावा ठोक रहे हैं. TDP का दावा इस बात पर मजबूत है कि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनीं NDA सरकार में भी उसके ही सांसद जीएमसी बालयोगी (GMC Balayogi) को लोकसभा स्पीकर बनाया गया था.

ओम बिरला पर भी दोबारा दांव खेल सकती है भाजपा

भाजपा लोकसभा स्पीकर के पद पर एक बार फिर ओम बिरला को नामित कर सकती है. दरअसल बिरला को पीएम मोदी के मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है. माना जा रहा है कि स्पीकर पद पर नियुक्त करने के लिए ही बिरला को मंत्री पद नहीं दिया गया है. बिरला यदि फिर से स्पीकर बनते हैं तो वे लगातार दो बार इस पद पर चुनकर कार्यकाल पूरा करने के रिकॉर्ड में कांग्रेस नेता बलराम जाखड़ की बराबरी कर लेंगे, जो इससे पहले ऐसा करने वाले इकलौते नेता रहे हैं.

कैसे चुना जाएगा लोकसभा स्पीकर

नई लोकसभा के गठन के साथ ही स्पीकर की पोस्ट खाली हो जाती है. लोकसभा की पहली बैठक में अस्थायी स्पीकर की नियुक्ति होती है. इसके बाद स्थायी स्पीकर के लिए नॉमिनेशन किए जाते हैं. नॉमिनेशन पूरा होने के बाद लोकसभा के सभी सदस्य सांसद अपनी-अपनी पसंद के उम्मीदवार के पक्ष में वोट करते हैं. अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को लोकसभा स्पीकर के तौर पर चुन लिया जाता है.

क्या होती है स्पीकर की जिम्मेदारी

  • स्पीकर की जिम्मेदारी संसद को दलीय सोच से ऊपर उठकर पारदर्शी तरीके से संचालित करने की होती है.
  • स्पीकर ही लोकसभा का मुख्य प्रवक्ता और संसदीय नियमों का मुख्य व्याख्याता होता है. 
  • संविधान के हिसाब से दलबदल कानून के तहत किसी सांसद पर कार्रवाई करने और उसे अयोग्य करने के मामले में स्पीकर पर बड़ी पॉवर होती है.
  • संसद में बहुमत रखने वाली सरकार की सत्ता के समय स्पीकर महज सदन चलाने वाले औपचारिक व्यक्ति की भूमिका में होता है, लेकिन गठबंधन सरकारों में उसकी भूमिका अहम हो जाती है.
  • सामान्य परंपरा के मुताबिक, संसद में स्पीकर का पद सत्ताधारी गठबंधन के पास रहता है, जबकि डिप्टी स्पीकर का पद विपक्षी दलों में से किसी को दिया जाता है. हालांकि इसके लिए कोई नियम नहीं है. 

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